दोस्त की दु*ल्हन को सु*ग*हरात में ......
मेरे अन्दर जाते ही मैंने देखा कि नीरज की दुल्हन खिड़की के पास खड़ी थी और चांद को देखे जा रही थी.
खिड़की से चांद की हल्की रोशनी आ रही थी. उसने चुनरी नहीं ओढ़ी हुई थी.
उसके बाल खुले हुए थे.
खिड़की से हल्की-हल्की हवा अन्दर आ रही थी, जिसके कारण उसके लम्बे बाल हवा में उड़ रहे थे.
वह जैसे अपने पिया का इंतजार कर रही थी. मैंने अपने कदम उसकी तरफ बढ़ाए.
मेरी आहट से वह तुरंत ही मेरी ओर मुड़ी और झट से जाकर सु*हा*गरात वाले बेड पर बैठ गई.
उसने चुनरी ओढ़ ली.
इतनी सुंदर दुल्हन मैंने आज तक नहीं देखी थी.
बड़ा ही प्यारा चेहरा, प्यारी प्यारी आंखें, आंखों में काजल, रसभरे होंठ और उनमें लाल लिपस्टिक, खुले लम्बे बाल थे.
उसने लाल रंग का लहंगा चोली पहना हुआ था.
गहरे गले वाली चोली में से उसके आधे से अधिक संतरे झांक रहे थे.
ल*हंगा और चोली के बीच में कुछ हिस्सा खुला हुआ था, जहां से उसका सपाट पेट दिख रहा था और बीचों बीच गहरी नाभि थी.
लचक लिए हुई उसकी कमर को देख कर खड़ा हो गया.
यह सब देख कर मेरी तो नियत ही खराब हो गई.
मेरा सामान अब अपना आकार लेने लगा था.
नीरज की आज सु*हा*गरात थी, पर वह यहां नहीं था.
नीरज दो घंटे से पहले नहीं आने वाला था.
चूंकि रात के 2 बज चुके थे तो नीरज के आते-आते सुबह हो जाने वाली थी.
मैं दुल्हन की सु*हा*गरात खराब नहीं करना चाहता था. मैंने मौके का फायदा उठाना ही ठीक समझा.
वैसे भी दुल्हन ने तो नीरज को देख नहीं था और जब उसकी आंटी ही नहीं पहचानी, तो ये क्या पहचानती.
पर डर इस बात का था कि कहीं पहचान गई तो मेरी तो खटिया खड़ी हो जाएगी.
मैंने खिड़की बंद की.
अब बहुत कम ही रोशनी अन्दर आ रही थी.
मैं सेहरा खोलकर दुल्हन के पास बैठ गया.
मैंने उसके सर से चुनरी हटाई.
उसने सर झुकाया हुआ था.
फिर मैंने उसके हाथ अपने हाथ में ले लिए और अपने होंठों को उसके हाथ पर लगा दिया.
उसने कुछ नहीं कहा.
मैंने मन में कहा कि चलो, अब काम बन गया … दुल्हन ने नहीं पहचाना. फिर मैं आगे बढ़ा और उसकी गर्दन को चूमने लगा.
उसने चेहरा दूसरी तरफ कर दिया.
मतलब वह समझ गई कि क्या होने वाला है.
आखिर उसे भी इस पल का कब से इंतजार रहा होगा.
मैंने पीछे से उसकी चोली की डोरी और ब्रा का हुक खोल दिया और पीछे धकेलते हुए उसे बेड पर लेटा दिया.
उसके दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से दबा कर मैं उस पर चढ़ गया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए.
मैं उसके होंठों का रसपान करने लगा.
आह बड़े ही कोमल होंठ थे उसके!
लिपकिस करने में बहुत मजा आ रहा था.
किस से उसकी दबी हुई आग का पता चल रहा था.
रिया भी पूरा साथ दे रही थी. जीभ से जीभ की ल*ड़ाई में बहुत मजा आ रहा था.
फिर किस करते हुए ही एक हाथ से मैं रिया के संतरो को कपड़े ऊपर से ही दबाने लगा.
इससे रिया मचलने लगी.
देर ना करते हुए मैंने संतरो को चो*ली और ब्रा से एक साथ आजाद कर दिया.
सच में बड़े ही सुंदर थे उसके संतरे … एकदम मध्यम आकार के बिल्कुल तने हुए.
सं*तरो के बीचों बीच गहरे भूरे रंग के नि*प्पल, एकदम तने हुए किशमिश की तरह लग रहे थे.
मैंने दोनों संतरो को हाथ में ले लिया और प्यार से हल्के हाथों से सहलाने लगा.
साथ ही अपने होंठ रिया के एक नि*प्पल पर ले गया. जैसे ही मेरे होंठ रिया के नि*प्पल पर पड़े, रिया ने गहरी सांस ली और मेरा सर जोर से पकड़ लिया.
मैं एक-एक करके उसके दोनों सं*तरो को ब*च्चों की तरह बेतहाशा चाटता चूसता गया.
कुछ देर बाद सं*तरो को जोर-जोर से ऐसे दबाने लगा जैसे आंटा गूथ रहा होऊं.
संतरो का मजा लेने के बाद मैंने एक हाथ रिया के पेट पर फिराते हुए नीचे ले गया और उसके लहंगे का ना*ड़ा खोल दिया.
फिर उसके लहंगे को धीरे से नीचे सरकाते हुए उसे रिया की टांगों से अलग कर दिया.
अब मैं अपना हाथ रिया की पैं*टी के ऊपर ले आया और ऊपर से ही हल्के दबाव से रिया की गु*फा को रगड़ने लगा.
फिर अपने हाथ को धीरे से पैं*टी के अन्दर ले गया.
उसकी गु*फा के बाल बिल्कुल साफ थे.
उसने अपने दोनों पैरों को कस के जोड़ लिया.
मैंने दोनों हाथों से गु*फा को पैंटी से आजाद करना चाहा पर रिया ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए
मैंने रिया के गा*ल और होंठ को ऐसे चूमा, जैसे उससे परमिशन मांगी हो.
उसने कुछ नहीं कहा.
मैं फिर से उसकी पैं*टी के पास हाथ ले गया और एक बार और कोशिश की.
इस बार उसने कोई विरोध नहीं किया.
मैंने गु*फा को पैं*टी से आजाद कर दिया.
अब रिया मेरे सामने पूरी नं*गी थी.
मैंने भी झ*टपट अपने कपड़े उ*तार दिए.
मेरा सा*मान अपनी अकड़ दिखाता हुआ बाहर आ गया और उ*त्तेजना से पूरा कठोर होकर तेज झटके खाने लगा.
मैंने चु*सवाना ठीक नहीं समझा और सहलाते हुए रिया की टांगें मोड़ दीं.
मैं उसकी दोनों टां*गों के बीच में आ गया.
रिया की एक जांघ को चूमते हुए मैं अपने होंठ गु*फा के पास ले आया.
अपनी जीभ निकाल कर उसे एक बार रिया की गु*फा में ऊपर से नीचे फेर दिया.
रिया ने तुरंत अपनी जांघों को दबा कर मेरे सर को कस लिया और मेरे सर के बाल नोचने लगी.
पर मैं लगा रहा.
मैं कभी रिया की गु*फा के दाने को छेड़ता, तो कभी गु*फा के अन्दर जीभ को घु*साने का प्रयास करता.
मैं ऐसा लगातार करता रहा.
उसकी गु*फा पूरी तरह गीली हो चुकी थी.
रिया अत्यधिक प्यासी हो जाने के वजह से लगातार ‘आह की आवाज निकाल रही थी.
अब मैंने ज्यादा देर ना करते हुए थोड़ा झुक कर अपना सामान रिया की गु*फा की फांकों में ऊपर नीचे फेरने लगा.
उसकी गु*फा सामान लेने के लिए अपने आप थोड़ा खुलने लगी और रिया बेचैन होकर हि*प ऊपर उठाने लगी.
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